- अज्ञान ही संसार में दुःख का कारण हे |
- उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।
- किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने से पहले सेकड़ो कठिनाईयो का सामना करना पड़ता हे |
- अनुभव ही शिक्षक, जब तक जीना, तब तक सीखना’’
- ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है
- झगडालू व्यक्ति सदेव कायर ही होते हे |
- लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो।
- प्रेम के बल पर ही संसार का प्रत्येक व्यक्ति संसार पर विजय प्राप्त करता हे |
- किसी के सामने सिर मत झुकाना तुम अपनी अंतःस्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।
- पवित्रता, दृढ़ता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ
- मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है
- कलयुग में दान ही एकमात्र धर्म हे |
- हम दूसरो के दोष देखकर उन्हें शिक्षा देने जाते हे, परन्तु स्वयं के दोष को नहीं देखते |
- जिस व्यक्ति ने अपनी समस्त इछाओ का त्याग कर दिया हे, वही सुखी हे |
- इस संसार में हाथ पर हाथ धरकर चुपचाप बेठने से काम नहीं चलेगा | उन्नति के लिए निरन्तर प्रयन्त करो |एक न एक दिन अवश्य सफलता प्राप्त करोगे |
- भय ही मृत्यु का आलिगन हे | भय से छुटकारा पाने का प्रयन्त करो और आज से ही अपने को निडर बना लो |
- संसार में जो मुर्ख व्यक्ति होते हे, वे अपने भाग्य को ही दोष देते हे और कहते हे की हमारा भाग्य ख़राब हे, इसलिए हम मुर्ख हे | लेकिन अपने इस विचार को हमें बदलकर यह कहना चाहिए – ”में ही अपने भाग्य को बनाऊंगा” तभी हम सफलता प्राप्त कर सकते हे |
- शिक्षा का मतलब यह नहीं हे की तुम्हारे दिमाग में बहुत सी बाते इस प्रकार डाल दी जाए जो आपस में लड़ने लगे और तुम्हारा दिमाग जीवन -भर उन्हें हजम न कर सके | जिस शिक्षा से हम अपने जीवन का उथान कर सके | चरित्रवान बन सके , वही सची शिक्षा हे |
- अपने आदर्शो पर सदा प्रसन्तापूर्वक डटे रहो | यह ध्यान रखो की दुसरो को मार्ग दिखाने या हुकुम चलाने का प्रयन्त कभी न करो |
- आज संसार में प्रत्येक व्यक्ति को ऐसी शिक्षा की आवस्यकता हे , जिससे मनुष्य की मानसिक शक्ति एव चरीत्र का निर्माण हो और मनुष्य अपने पेरो पर खड़ा हो सके |